BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।

उत्तर -

पदार्थोद्देश निरूपण

१.

द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायाभावाः सप्त पदार्थाः।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्ति श्री अन्नम्भट्ट कृत 'तर्कसंग्रहः' से उद्धृत की गयी है।

प्रसंग - तर्कसंग्रहकार ने न्यायदर्शन के मान्य वैशेषिक दर्शन के सप्त पदार्थों का वर्णन किया है।

व्याख्या - द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य (जाति) विशेष समवाय तथा अभाव ये ही सात पदार्थ हैं।

सारा स्थावर - जंगम जगत तार्किकों के मत से इन्हीं सात पदार्थों में संग्रहीत हो जाता है।

विशेष - 'पदस्यार्थः अभिधेयार्थः पदार्थः इसकी उत्पत्ति के अनुसार 'पदार्थ' का सामान्य लक्षण बनता है - 'अभिधेयत्वं पदार्थत्वम्। पद का यह अभिधेय 'कार्य' होने से पद-निष्ठ वृत्ति अर्थात् व्यापार- विशेष की अपेक्षा रखता है जो न्यायमत से शक्ति और लक्षणा नाम से दो प्रकार की है।

२.

तत्र द्रव्याणि पृथिव्यप्तेजोवाखाकाशकालदिगात्ममनांसि नवैव।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इस पंक्ति में द्रव्य नामक पदार्थ के नौ प्रकार बताए गये हैं।

व्याख्या - इन सप्त पदार्थों में द्रव्य नामक पदार्थ नौ प्रकार का होता है- पृथ्वी, जल, तेजस, वायु आकाश, काल, दिक्, आत्मा तथा मन ये नौ ही द्रव्य हैं। जो समवाय सम्बन्ध से गुण अथवा कर्म का आश्रय हो वह द्रव्य कहा जाता है। उत्पत्ति क्षण में घट तो निर्गुण ही उत्पन्न होता है फिर गुणों के अभाव में वह 'द्रव्य' कैसे होगा? इस शंका का समाधान यह है कि उत्पत्तिक्षणानन्तर ही उसमें रूप परिणाम आदि गुण उत्पन्न हो जाते हंि अतः उसमें 'गुणाश्रयख' लक्षण घटित हो जाता है।

विशेष - मीमांसक तथा कुछ वैशेषिक भी तमस् को दशम द्रव्य मानने के पक्ष में हैं। परन्तु वह तेजोऽभाव रूप होने से अभाव पदार्थ के अन्तर्गत ही है अतः उसे अलग द्रव्य मानने की कोई आवश्यकता नहीं है ऐसा सिद्धान्त पक्ष वालों का कथन है

३.

रूप-रस - गन्ध - स्पर्श - सङ्ख्या - परिमाण - पृथक्त्व - संयोग - विभाग - परत्वापरत्व - गुरुत - द्रवत्व -स्नेह - शब्द - बुद्धि - सुख - दुखेच्छाद्वेष - प्रयत्न - धर्माधर्म - संस्काराश्चतुर्दिशतिर्गुणाः।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्ति श्री अन्नम्भट्ट इति 'तर्कसंग्रहः' के पदार्थोक्षा निरूपण से उद्धृत है।

प्रसंग - इसमें समवाय सम्बन्ध से द्रव्यों में रहने वाले चौबीस गुणों का उल्लेख किया है।

व्याख्या - रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, शब्द, बुद्धि, सुख, दुःख इच्छा द्वेष प्रयत्न धर्म, अधर्म तथा संस्कार ये ही चौबीस गुण हैं। द्रव्य एवं कर्म के अतिरिक्त केवल गुण ही ऐसा पदार्थ है जो सामान्यवान् है अर्थात् जिसमें सामान्य रहता है। इन चौबीस गुणों से संख्या परिमाण पृथत्व संयोग एवं विभाग तो सभी द्रव्यों में रहते हैं। परत्व तथा अपरत्व सभी मूर्ति द्रव्यों में रहते हैं। विभ्रु द्रव्यों में नहीं।

विशेष - ये चौबीस गुण समवाय सम्बन्ध से द्रव्यों में ही रहते हैं अन्य किसी पदार्थ में नहीं। इनका सामान्य लक्षण है " द्रव्यकर्मभिन्नत्वे सति सामान्यवत्वम्” अर्थात् द्रव्य और कर्म के अतिरिक्त जो सामान्यवान् हैं जिसमें सामान्य रहता है उसे गुण कहते हैं।

४.

उत्क्षेपणापक्षेपणाकुञ्चनप्रसारणगमनानि पञ्च कर्माणि।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इस पंक्ति में पाँच प्रकार के कर्मों का कथन किया गया है।

व्याख्या - उत्क्षेपण अपक्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण तथा गमन के भेद से कर्म पाँच प्रकार के होते हैं।

इनमें उत्प्रेषण का अर्थ है ऊपर की ओर फेंकना। अपक्षेपण का अर्थ है नीचे की ओर फेंकना। आकुञ्चन है समेटना- सिकोड़ना। प्रसारण है फैलाना और गमन है चलना। भ्रमण है चक्रवत क्रिया अर्थात् घूमना रेंचन है खाली करना जैसे बोतल शीशी आदि में भरे द्रव को बाहर निकालकर उसे खाली करना। फेफड़े से वायु को बाहर निकालना भी रेचन ही है। स्पन्दन 'स्यादि प्रस्रवणे' धातु से निष्पन्न होने से झरने या बहने के अर्थ में प्रयुक्त होता है। ऊर्ध्वज्वलन तो बहिन का अर्थात् तिर्यग्गमन (तिरछी गीत) वायु का कर्म है जो सर्व विदित ही है।

विशेष - उत्क्षेपण आदि पाँच ही कर्म हैं: न कम न अधिक। यद्यपि भ्रमण रेचन स्यन्दन उर्ध्वज्वलन तिर्यग्गमन आदि भी कर्म ही हैं लेकिन ये गमन के ही भिन्न प्रकार होने के कारण उसी में अन्तर्भूत हैं। इस प्रकार कर्म के पाँच ही भेद हुये।

५.

परमपरं च द्विविधं सामान्यम्।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इस पंक्ति में द्विविध 'सामान्य' पदार्थ का कथन किया गया है?

व्याख्या - सामान्य दो प्रकार का होता है पर सामान्य और अपर सामान्य। द्रव्यत्व पृथ्वी जल आदि नौ द्रव्यों में रहने के कारण केवल पृथ्वी या केवल जल आदि में रहने वाले पृथिवीत्व जलत्व आदि की अपेक्षा अधिक देश या स्थान में रहने के कारण 'पर सामान्य' है एवं उसकी अपेक्षा कम देश में रहने वाले पृथिवीत्व जलत्व आदि 'अपरसामान्य' हैं।

विशेष - सामान्य का दूसरा नाम 'जाति' है। 'पर' वह है जो अधिक देश में रहे और 'अपर' वह है जो न्यून देश में रहे परत्वमधिकदेशवृत्तित्वम् अपरत्वं च न्यून देश वृत्तित्वम्।

6.

नित्यद्रव्यवृत्तयो विशेषास्त्वनन्ता एव।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इस पंक्ति में नित्य द्रव्यों का उल्लेख किया गया है।

व्याख्या - नित्य द्रव्यों में रहने वाले 'विशेष' तो असंख्य या अनेक हैं ('समवाय' पदार्थ की तरह एक नहीं)। पृथ्वी, जल, तेज और वायु इन चार स्थूल भूतों के परमाणु (सूक्ष्मतम अवयव) और आकाश काल दिक् आत्मा तथा मन न्याय वैशेषिक मत से नित्य दिव्य हैं। इन्हीं नित्य द्रव्यों के परस्पर भेदक तत्वों के रूप में 'विशेष' की कल्पना सर्वप्रथम वैशेषिक सूत्रकार महर्षि कणाद ने की थी जिसके कारण उनके दर्शन का नाम 'वैशेषिक' पर गया।

विशेष - महर्षि कणाद को 'विशेष' को अलग पदार्थ मानने की क्या आवश्यकता थी? इस प्रश्न का समाधान इस प्रकार है - घट पट इत्यादि नित्य द्रव्य तो अपने घटकावयवों से ही परस्पर भिन्न हो जाते हैं किन्तु परमाणु आदि नित्य द्रव्यों में तो अवश्य ही नहीं होते जिनके कारण उनका पारस्परिक भेद हो

७.

समवायस्त्वेक एव।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इस पंक्ति में समवाय के सन्दर्भ पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या - 'समवाय' पदार्थ तो एक ही प्रकार का होता है।

'समवाय' भी 'संयोग' नामक गुण की तरह ही एक विशेष प्रकार का सम्बन्ध है। भेद इतना ही है कि संयोग जहाँ अनित्य होता है वहाँ 'समवाय' नित्य होता है इसी से 'नित्यसम्बन्धत्वं समवायत्वम् ऐसा 'समवाय' का लक्षण बनता है। किन्तु समवाय की न्यत्य - वैशेषिक दर्शन में विशेष महत्ता के कारण ही इसे सामान्य सम्बन्ध नामक गुण-पदार्थ से अलग करके एक स्वतन्त्र पदार्थ मान लिया गया है।

विशेष बिना समवाय के सूक्ष्म से स्थूल की सृष्टि हो ही नहीं सकती। दो परमाणुओं में समवेत ( समवाय सम्बन्ध से युक्त ) होकर ही एक 'द्वयणुक' तीन 'द्वयणुकों' में समवेत होकर एक स्थूल 'त्यणुक ( या त्रसरेणु) चार 'त्र्यणुको' में समवेत होकर एक अधिक स्थूल 'चतुरणुक' उत्पन्न होता है। समवायी और समवेत के बीच का समवाय सम्बन्ध समवेत कार्य द्रव्य के सन्ता - काल तक नित्य रहेगा। इसी से उसे नित्य सम्बन्ध कहा जाता है और 'नित्य सम्बन्धत्वं समवायत्वम्' ऐसा उसका लक्षण किया जाता है।

८.

अभावाश्रच्चतुर्विधः प्रागभावः प्रध्वंसाभावः अत्यन्ताभावः अन्योन्या-भावश्चेति

सन्दर्भ - पूर्ववत्।
प्रसंग - इस पंक्ति में तर्कसंग्रहकार ने अभाव के प्रकार बताये हैं।
व्याख्या -अभाव के चार प्रकार या भेद होते हैं- प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव तथा अन्योन्याभाव। किसी चीज में भाव का रहना अभाव कहा जाता है।

विशेष - अभावबोधक 'नञ्' शब्द से उत्पन्न प्रत्यय या बोध के विषय को 'अभाव' कहते हैं। जैसे 'यहाँ घट नहीं हैं'- इस वाक्य में 'नहीं' से घटाभाव का बोध है। इसलिये इसका लक्षण इस प्रकार किया जाता है - 'नशब्दजन्यबोधविषयत्वम् अभावत्वम्।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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